Wednesday 20 April 2016

पाकिस्तान बनने की नीव - मेरी कही

पाकिस्तान बनने की नीव - मेरी कही
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सामान्य इतिहास में पाकिस्तान को जिन्नाह की जिद कहा जाता है। भारत के विभाजन के पीछे जिन्नाह को ही दोषी बताया जाता है। हिंदुत्व के समर्थक गाँधी जी को भी बराबर का दोषी मानते हैं जिन्होंने कहा था की पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। शायद इसीलिए गोडसे ने विभाजन के बाद गाँधी जी की लाश बिछा दी थी।
लेकिन ये हुआ क्यों ? जिन्नाह पाकिस्तान के लिए आमादा क्यों हुए ? पाकिस्तान बनने के लिए इतिहासकार किसी एक घटना के ऊपर एकमत नहीं हैं। कोई पाकिस्तान बनने की नीव सन 28 में नेहरु रिपोर्ट को मानता है , कोई शिमला नेगोशिएशन को , कोई गाँधी जिन्नाह निगोशिएशन के फेल होने को।
लेकिन अधिकांश इतिहासकार 1937 में हुए UP के चुनावों को पाकिस्तान बनने की नीव मानते हैं।
1930-31 के गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन के बाद गोल मेज सम्मलेन हुए। और भारत की जनता को सत्ता में हिस्सेदारी देने के लिए अंग्रेजो ने प्रदेशो में असेम्बली चुनाव का चारा दिया। एक तरह से ये सत्ता में हिस्सेदारी का लालच था जिससे राष्ट्रिय आन्दोलन कमजोर हो सके। अंग्रेजो का मानना था की कांग्रेस का एक तबका सत्ता और ऑफिस की चाह में समझौता करेगा, उग्र तबका विरोध करेगा और कांग्रेस अंतर कलह की शिकार होगी।
इसके साथ ही भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेज कम्युनल अवार्ड लेकर आये। इसके तहत प्रदेश असेम्बली में मुस्लिम के लिए सीटें आरक्षित कर दी गयी और ये भी कानून बना की इन सीटों के लिए सिर्फ मुस्लिम ही वोट दे सकते हैं।
हिन्दू सीटो पर सिर्फ हिन्दू खड़ा होगा और उसको वोट देने का अधिकार सिर्फ हिन्दू को। मुस्लिम सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार और वोट देने का अधिकार सिर्फ मुस्लिम को।
इसे ब्रिटेन का GOI 1935 एक्ट कहते हैं। इसके तहत पूरे अविभाज्य भारत में चुनाव घोषित हुए जिसमे कांग्रेस, मुस्लिम लीग एवं अनेको पार्टियों ने हिस्सा लिया।
UP में भी चुनाव हुए। UP के चुनावों में चार मुख्य पार्टियाँ थीं। कांग्रेस, मुस्लिम लीग , नेशनल एग्रीकल्चर पार्टी और हिन्दू महासभा।
उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष नेहरु थे। मुस्लिम लीग मृतप्राय पार्टी थी जिसमे नेता तो थे लेकिन कार्यकर्त्ता नहीं। जिन्नाह चार साल के सेल्फ एक्जाइल से लन्दन से वापस आये थे।
मुस्लिम लीग को दिशा देने की जिम्मेदारी उन्ही पर थी। और वो कांग्रेस के नक्शेकदम पर ही चले। कांग्रेस की तरह उन्होंने भी भारत की आजादी को अपना लक्ष्य बताया और इसके लिए हिन्दू मुस्लिम एकता की वकालत की। उन्होंने चुनावी जनसभाओ को अपने संबोधन में कहा की अंग्रेजो को सशत्र क्रांति से नहीं हटाया जा सकता और असहयोग आन्दोलन अभी तुरंत शुरू होना मुश्किल है ऐसे में हम विधान सभाओ के जरिये संविधान बदलने पर जोर देंगे, आजादी के आन्दोलन को इसके जरिये आगे बढ़ाएंगे। कमोबेश यही नीति कांग्रेस की भी थी।
लेकिन अंग्रेज इन दोनों ही पार्टियों को सत्ता में नहीं आने देना चाहते थे। NAP हिन्दू और मुस्लिम एलीट यानी रईसों और जमींदारो की पार्टी थी। अंग्रेज सरकार से समर्थित थी। चुनावों से पहले अंग्रेज सरकार ने गांवो के विकास के लिए रूरल डेवलपमेंट स्कीम लांच की जिसमे पूरे प्रदेश को 270 सर्किल में बांटा गया और हर सर्किल में १२ गाँव रखे गए। हर गाँव के लिए 5000 रूपये की रकम एलोट की गयी और इस रकम को खर्च करने के लिए जो कमेटी बनी उसका अध्यक्ष NAP के जमींदारो को बनाया गया। NAP पार्टी के उम्मीदवारों को सरकार की मदद थी। पैसा था, हिन्दू मुस्लिम यूनिटी थी।
हिन्दू महासभा भाई परमानन्द के निर्देशन में कांग्रेस के खिलाफ खड़ी हुई। उसने कांग्रेस को हिन्दू हितो के खिलाफ बताया। हिन्दू महासभा के अनुसार कांग्रेस के मंदिर प्रवेश अधिकार, छुआ छूत मिटाने के लिए कानून लाने का वादा हिन्दू धर्म को बर्बाद करने के लिए था। हिन्दू महासभा ने कांग्रेस के कई उम्मीदवारों जैसे सम्पूर्णानन्द आचार्य नरेन्द्र देव को नास्तिक कहते हुए उनके खिलाफ निजी दुष्प्रचार किया।
लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने एक दूसरे के साथ अघोषित समझौता किया। पूरे UP में 66 मुस्लिम सीटें थीं जिनमे सिर्फ तीन सीटों पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के उम्मीदवार एक दूसरे के आमने सामने थे। पंडित नेहरु अपनी चुनावी रैलियों में मुस्लिम जनसभाओं में कहते की जहाँ कांग्रेस उम्मीदवार नहीं है वहां मुस्लिम लीग को वोट दीजिये। इसी तरह जिन्नाह और मदनी साहब जैसे उलेमाओ ने कांग्रेस को वोट देने की अपील की। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने बहुत जगह कांग्रेस के लिए प्रचार किया। यहाँ तक की अपने वाइस चांसलर जिया साहब के साथ एक बार धक्का मुक्की की क्योंकि वो अपने एक रिश्तेदार जो NAP पार्टी से खड़े थे उनका प्रचार कर रहे थे।
ऐसे माहौल में सभी पंडितों ने कांग्रेस को मात्र 80 सीटें दी थी मुस्लिम लीग को 2-4 और NAP की सरकार बनने का दावा किया गया था। लेकिन हुआ उल्टा।
कांग्रेस ने 159 जनरल सीटों में 133 सीटें जीतीं, मुस्लिम लीग ने 66 में से 29 सीटें जीत सबसे बड़ी मुस्लिम पार्टी होने का अधिकार पाया।
सभी उम्मीद कर रहे थे की UP में कांग्रेस और मुस्लिम लीग मिलकर सरकार बनायेंगे। लेकिन कांग्रेस जो अपने अकेले दम पर बहुमत में आ गयी थी। उसने मुस्लिम लीग को अधर में छोड़ दिया। नेहरु-जिन्नाह का अघोषित समझौता ख़तम हो गया। जो परस्पर विश्वास आपस में कायम हुआ था वो ख़तम हो गया। मुस्लिम लीग जो 1937 तक नेशनलिज्म के रास्ते पर चल रही थी उसने अपनी प्राथमिकता मुस्लिम हितो को दे दी।
ये आज तक रहस्य है की कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार क्यों नहीं बनाई। लेकिन उसके बाद दोनों पार्टियों में जो तनाव पैदा हुआ जो अविश्वास पैदा हुआ वो कभी नहीं भरा।
इस कहानी का अंत भारत के विभाजन में हुआ।
साभार : कुछ किताबें, कुछ इन्टरनेट

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