Wednesday 20 April 2016

पाकिस्तान बनने की नीव - भाग चार - मेरी कही

पाकिस्तान बनने की नीव - भाग चार - मेरी कही
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अब तक आपने पढ़ा की 1937 के चुनावों में मुस्लिम लीग और कांग्रेस ने एक दूसरे को अघोषित समर्थन किया। उम्मीदों के विपरीत कांग्रेस और मुस्लिम लीग को चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली। लेकिन कांग्रेस ने लीग के साथ मिल कर सरकार नहीं बनाई। सरकार बनाने के तुरंत बाद कांग्रेस ने MMCP के जरिये मुस्लिम समुदाय में अपनी पैठ को मजबूत करना शुरू किया। जिसका मुस्लिम लीग ने अपने नेताओं और अखबारों के जरिये बखूबी जवाब दिया। अब आगे *******
UP में जब पहला उपचुनाव हुआ तब कांग्रेस के रफ़ी अहमद किदवई चुने गए , मुस्लिम लीग ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था। उस समय लीग और कांग्रेस में सरकार को बनाने के लिए मंत्री पदों के लिए बातचीत चल रही थी। आपसी सम्बन्ध अच्छे थे।
लेकिन उसके बाद MMCP के जरिये कांग्रेस ने जब मुस्लिम मतों में सेंध लगानी शुरू की और आपसी कडवाहट बढ़ती चली गयी , ऐसे माहौल में उरई-झाँसी-हमीरपुर की रूरल सीट पर उपचुनाव घोषित हुआ। इस सीट पर पहले स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव जीते थे लेकिन उनकी मौत हो जाने से चुनाव दोबारा कराये जाने थे। ये सीट मुस्लिम सीट थी जहाँ वोट देने का अधिकार कम्युनल अवार्ड के तहत सिर्फ मुस्लिम लोगों को था। और कुल वोट सिर्फ 6700 थे।
कांग्रेस ने निसार अहमद खान शेरवानी साहब को अपना उम्मीदवार बनाया। निसार साहब पहले पोस्ट ऑफिस डिपार्टमेंट में सुप्रिटेंदेंट थे। असहयोग आन्दोलन में इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस से जुड़े थे। यूँ तो अलीगढ में रहने लगे थे और 1937 के जनरल एलेक्शन में पहले किसी और सीट से चुनाव लड़कर हार चुके थे।
इस तरह एक आउट साइडर को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाकर इसकी शुरुआत की। जैसा की अपेक्षित था झाँसी क्षेत्र में लोकल कार्यकर्ताओ ने इसे पसंद नहीं किया। अंदरूनी कलह और खीचतान ने चुनाव प्रचार को बुरी तरह प्रभावित कर दिया।
कांग्रेस पार्टी के स्टार मुस्लिम प्रचारक मौलाना अताउल्लाह शाह बुखारी ने किसी और कांफ्रेंस में अपनी मौजूदगी को जरूरी बता आने से मना कर दिया। मौलाना हुसैन अहमद मदनी जी देवबंद के सबसे बड़े आलिम थे , पूरी दुनिया में जिनका नाम था उन्होंने ये कहते हुए मना कर दिया की झाँसी में उन्हें कोई नहीं जानता। खुद रफ़ी अहमद किदवई जी इस चुनाव के प्रभारी थे वो भी निर्लिप्त थे। न उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए पैसो की व्यवस्था की न कार्यकर्ताओ की।
ऐसे में दुखी होकर शेरवानी साहब के भाई फ़िदा जो उनके चुनाव प्रचार के मेनेजर थे , ने नेहरु जी को एक चिट्ठी लिखी। उन्होंने लिखा " कांग्रेस जो खुद को एक सोशलिस्ट पार्टी कहती है उसने जिस तरह की उदासीनता और लापरवाही दिखाई है वो भी तब जब वो सत्ता में है साबित करती है की एक मुसलमान का कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है। "
फ़िदा जी ने लिखा की अगर उनके भाई उम्मीदवारी वापस नहीं लेते हैं तो उनका हारना निश्चित है।
खुद निसार साहब ने भी एक पात्र नेहरु जी को लिखा की पिछले चुनाव में वो प्रचार में सारा पैसा लगा चुके हैं और इस चुनाव के लिए उनके पास पैसा नहीं बचा है। उधर मुस्लिम लीग के नेता राजा महमूदाबाद ने 15000 रूपये लीग के चुनाव प्रचार के लिए भेजे हैं। निसार साहब ने लिखा की मुस्लिम लीग धर्म को चुनाव प्रचार का मुख्य हथियार बना रही है और "इस्लाम खतरे में" नारा उनका प्रोपेगेंडा है। लीग ने इस चुनाव को कुफ्र और इस्लाम के बीच लड़ाई में बदल दिया है। उन्होनेनेह्रु जी से अनुरोध किया की वो प्रचार के लिए उलमाओ को भेजें जिनका कांग्रेस से जुड़ाव है।
पिछले चुनावों में कांग्रेस खुद फ़ाइनेन्शियलि कमजोर हो चुकी थे। नेहरु जी ने पर्सनल श्योरिटी पर 700 रूपये लेकर निसार साहब को भेजे। लेकिन वो इस बात से खुश नहीं थे की मुस्लिम लीग के दुष्प्रचार के विरोध के लिए उलमाओ का सहारा लिया जाये। उन्होंने जवाबी चिट्ठी में निसार साहब को अपना प्रचार आर्थिक आधार पर करने को कहा। और मौलाना और उल्माओ के सहयोग से दूर रहने को कहा।
खैर इसके बाद नेहरु जी ने इस चुनाव को खुद की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। उन्होंने तमाम हिन्दू विधायको जो आस पास के क्षेत्र के थे उन्हें झाँसी प्रचार के लिए भेजा। MMCP के अशरफ साहब को तमाम विरोध के बावजूद झाँसी रवाना किया ताकि वो मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस की नीतियों के आधार पर समझा सकें। हालांकि झाँसी के कार्यकर्ताओ ने नहरू जी को वार्न किया की अशरफ साहब को अपने कम्युनिस्ट विचारो की वजह से बेहद होस्टाइल लोगों का सामना करना पड़ सकता है।
और अपने सोशलिस्ट एजेंडे के साथ ही नेहरु जी ने मौलाना आजाद साहब को मौलाना मदनी साहब के साथ झाँसी का दौरा करने के निर्देश दिए।
नेहरु जी ने शौकत अली साहब के पेपर खिलाफत में छपी खलीकुज्जमा ( नेहरु जी के परम मित्र) साहब की सांप्रदायिक अपील का विरोध किया और उनसे जवाब माँगा। और साथ में नेहरु जी ने रफ़ी अहमद किदवई साहब के कहने पर बहुत से मौलानाओ और उल्माओ को झाँसी के लिए रवाना भी किया। ताकि सोशलिस्ट और धार्मिक प्रचार दोनों साथ में चले।
झाँसी से मुस्लिम लीग के उम्मीदवार रफ़ी उद्दीन अहमद साहब थे। पिछले चुनाव में रफ़ी साहब स्वतंत्र उम्मीदवार थे और बहुत कम वोटो के मार्जिन से हारे थे। वो मलखान राजपूत कास्ट से आते थे। चुनाव के शरू में ही वो जाति पंचायत के जरिये अपने हक़ में अपील करवा कर अपनी हवा बनवा चुके थे एक बढ़त प्राप्त कर चुके थे।
लीग की तरफ से चुनाव प्रचार की कमान खिलाफत मूवमेंट के वेटरन शौकत अली साहब ने संभाली। अपने चुनाव सभाओ में उन्होंने इस्लाम खतरे में है का नारा बुलंद किया। उन्होंने इंडिया के हिन्दू और मुस्लिम समुदाय में संभावित सिविल वार का जिक्र किया और कहा की वो भारत का स्पेन बना देंगे।
और ऐसे सांप्रदायिक माहौल में रफ़ी उद्दीन अहमद साहब को एक चिट्ठी डिलीवर हुई। ये चिट्ठी नेहरु जी ने लिखी थी। और इसमें उन पेमेंट्स का जिक्र था जो कांग्रेस ने अपने मौलानाओ और उल्माओ को करनी थी। मूलतः ये चिट्ठी रफ़ी अहमद किदवई साहब को डिलीवर होनी थी लेकिन लीग के रफ़ी साहब को पहुँच गयी। नामो की ग़लतफ़हमी ने लीग को एक हथियार दे दिया।
यूँ तो इस चिट्ठी का असितत्व प्रश्नों के घेरे में है कांग्रेस ने ऐसी किसी भी चिट्ठी का हमेशा खंडन किया है। लेकिन एक सच ये भी है की झाँसी के चुनावों में ऐसी एक चिट्ठी का लीग ने खुलकर इस्तेमाल किया। कांग्रेस के चुनाव प्रचार में लगे मौलाना और उल्माओं को इस्लाम का गद्दार घोषित किया गया। ऐसा दाग जो आगे पूरी जिंदगी उन पर लगा रहा।
मुस्लिम लीग ने देवबंद के जाने माने धार्मिक गुरु मौलाना अशरफ अली थानवी साहब से भी मदद मांगी। लीग के एक कार्यकर्त्ता ने थानवी साहब को चिट्ठी लिख कर एक फतवा देने का आग्रह किया। तब तक थानवी साहब लीग से बहुत मुत मइन नहीं थे। वो लीग के नेताओं के नास्तिक होने से खुश नहीं थे और उनके इस्लामी तौरतरीको पर एतराज रखते थे। लेकिन थानवी साहब की कांग्रेस से नाराजगी खिलाफत मूवमेंट से ही थी। थानवी साहब गाँधी जी को सार्वजनिक रूप से शातिर और ऐय्यार बोल चुके थे।
अपने सहयोगियों से मशवरे के उपरान्त थानवी साहब ने लीग को सपोर्ट न करने का निर्णय लिया। लेकिन उन्होंने फतवे के अनुरोध में ये राय जरूर टेलीग्राम से भेजी की कांग्रेस को वोट न दिया जाए।
अंत में नेहरु चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में खुद प्रचार करने झाँसी पहुंचे। चुनाव का नतीजा वोट पड़ने से दो दिन पहले तभी घोषित हो गया था जब चुनाव प्रचार करते नेहरु की कार पर पत्थर बरसे थे।
लीग 60% वोट पाकर आराम से चुनाव जीत गयी। शौकत अली साहब ने जीत के बाद घोषणा की कि आगे अगर कांग्रेस एक भी चुनाव जीती तो वो अपना नाम बदल देंगे। लीग इस जीत से बेहद उत्साहित थी।
लेकिन उत्साहित नेहरु भी थे। उन्होंने कांग्रेस को लिखे अपने विश्लेषण में कहा की रूरल क्षेत्रो में कांग्रेस को लीग के ऊपर बढ़त मिली है। कांग्रेस ने करीब 40% फीसदी वोट पायें हैं जो MMCP प्रोग्राम की सफलता का सबूत हैं। नेहरु जी ने लीग के सांप्रदायिक प्रचार पर दुःख जताया और कहा की लोगों को कुरआन पर हाथ रखकर शपथ दिलवाई गयी की वो लीग को वोट दें।
अंत में नेहरु जी ने कहा की बाहरी उम्मीदवार होते हुए भी कांग्रेस को इतने वोट मिले ये उनके MMCP प्रग्राम की सफलता है। उन्होंने कहा की इस चुनाव में दोनों पक्षों की तरफ से देश भर से मुस्लिम प्रचार करने आये। कांग्रेस की तरफ से आये मुस्लिम अब वापस जाकर अपने अपने क्षेत्रो में कांग्रेस नीतियों का प्रचार करेंगे।
अब अगले अंक में गढ़वाल और बिजनोर का इलेक्शन। क्या हुआ जब मुस्लिम लीग की तरफ से जीते विधायक ने लीग से इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस को ज्वाइन किया और नैतिकता के आधार पर फिर से चुनाव लड़ा। क्या वो ऐसे सांप्रदायिक माहौल में सफल हो पाए जानिए अगली क़िस्त में ?

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